हरितालिका तीज व्रत कथा 🌺
हरितालिका तीज का व्रत भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता है। इसे खासतौर पर सुहागिन महिलाएँ और कुंवारी कन्याएँ करती हैं। इस दिन माता पार्वती की आराधना कर अखंड सौभाग्य और अच्छे वर की प्राप्ति का आशीर्वाद लिया जाता है।
कथा :
एक समय की बात है — हिमालय की पुत्री पार्वती जी भगवान शिव को पति रूप में पाना चाहती थीं। इस हेतु उन्होंने कठोर तपस्या शुरू कर दी। उनके तप से प्रसन्न होकर नारद जी हिमालय के पास पहुँचे और कहा कि मैं पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से करवाना चाहता हूँ।
जब पार्वती जी को यह बात पता चली, तो वे बहुत दुखी हुईं। अपनी सहेलियों के साथ वे घने जंगल में चली गईं और वहाँ भगवान शिव की आराधना करने लगीं। सहेलियों ने उन्हें पिता द्वारा किए जाने वाले विवाह से "हर" (हर लिया) लिया और घने वन (ताल) में ले गईं। इस कारण इस व्रत का नाम हरितालिका पड़ा।
पार्वती जी ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तप किया और मिट्टी से शिवलिंग बनाकर पूजन किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए और उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया। तभी से यह व्रत स्त्रियों के लिए विशेष महत्व रखता है।
महत्व :
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सुहागिन महिलाएँ इस व्रत को पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य के लिए करती हैं। 
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कुंवारी कन्याएँ मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं। 
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इस दिन निर्जला व्रत रखा जाता है और रात्रि जागरण कर कथा सुनना, माता पार्वती-शिव की पूजा करना शुभ माना जाता है 
 
 
 
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